Sunday, February 6, 2022

Monologue : Mother Earth

 

Monologue : Dhara / Dharti

 

हेलो,  मैं  धरती हूँ. 

आज मैं खुश भी हूँ और दुःखी भी. 

खुश इसलिए, क्योकि अभीभी मेरे कुछ संतान मेरे बारेमे सोचने के लिए, मेरी देखभाल रखने के लिए वक्त निकालते है. और दुःखी इसलिए, क्योकि मेरे कुछ संतान ऐसे भी है जिनके लिए मेरा उपयोग करना उनका हक़ जरूर है, लेकिन मेरे प्रति उनके फर्ज तो उन्हें याद भी नहीं आते.

मैं  तो ये चाहती हु कि मेरे सारे  संतान हमेशा खुश रहे. उनको कोई तकलीफ का सामना नहीं करना पड़े. लेकिन कहीं कहीं विकास की अंधी दौड़ में मुझे भूल रहे है. सभ्यता (सिविलाइज़ेशन) के नाम पे कॉन्क्रीट के जंगल खड़े कर रहे है, पेड़ पौधे काट रहे है, नदी और सागर तक को भी नहीं छोड़ रहे.

अरे ये पेड़, पौधे, जानवर, नदी, जंगल ये सब भी मेरे ही संतान है. उनके लिए भी तो जीवन जरूरी है. अगर इंसान ये भूल जायेंगे तो उनकी भी तकलीफे बढ़ेगी ही. बाढ आना, सूखा पड़ना, समुद्रमे चक्रवात आना, भूकंप आना, ये सबके लिए जिम्मेदार कहीं  कहीं ये इंसान ही है. क्योकि ये सब प्रकृति का संतुलन बिगड़ने के कारण ही हो रहा है.

अगर यही चलता रहा तो मेरे ऊपर जो जीवन आप सब जी रहे है, वो जल्द ही खत्म भी होगा. 

हिमालय भी मुजमे है, और पवित्र नदी गंगे भी. ...... अरब सागर भी मुजमे है और चन्दन के घने जंगल भी...

ये सारी जगहों पे जाना सबको अच्छा लगता है...तो क्या इन सबको बचाना आपका फर्ज नहीं है ?  सोचो और इस दिशा में कुछ करो. 

"जननी, जन्मभूमिश्च , स्वर्गादपि गरीयसी. "

माँ और मातृभूमि, दोनों का दर्जा स्वर्ग से भी ऊपर होता है.

तो अगर आप को मुझे स्वर्ग बनाना है तो कुछ कदम उठाने पड़ेंगे.

तो क्या, आप अपने छोटे छोटे प्रयास से मेरी मदद करेंगे ?

आप चाहे तो बहोत कुछ कर सकते है.

जैसे,  जहॉ तक हो सके, ज्यादा से ज्यादा पेड़ पौधे लगाए,

हो सके तब तक सायकल का उपयोग करे ताकि प्रदुषण कम हो... ईंधन की बचत हो.. खेती में जैविक खातर का उपयोग करे..... प्लास्टिक का उपयोग ना  करे..... पानी का व्यय करे... बिजली का उपयोग संभलकर करे... सौर ऊर्जा का उपयोग करे.... और भी बहोत बातो का ख्याल रख के आप मुझे मेरे मूलतः स्वरूप में ला सकते है...

इससे जंगल भी बचेंगे और, बिन मौसम की बारिश भी नहीं होगी.  "ग्लोबल वॉर्मिंग" की  हानिकारक असर से बचने के साथ साथ  प्रकृति का संतुलन भी बना रहेगा.

माँ की ख़ुशी हमेशा उसके संतान की ख़ुशी से जुडी होती है.  अगर मेरे सारे संतान खुश, तो  मैं भी खुश.

ये, आकाश, वायु, जल और अग्नि  - मुझमे ही समाये है.... 

क्योकि, हम सब भी ये प्रकृति के ही संतान है.....

 

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